Tuesday, September 8, 2009


उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

अब दिल की खामोशियाँ भी कीर्तन कर रही है ..
कोने मैं छुपी हुई आस परदे से झांक रही है ...
उसके इंतजार मैं जो जिंदगी हमारी है ..
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

सपने तो आते है, पर नींद कहाँ आती है ..
उसकी आहट अब पल- पल हमें जगाती है ..
कब आएगी सामने , जिसे कहूँगा "ये जान हमारी है "
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

उस अंजान हमसफ़र के बिना ,रास्ता हटने लगा है पैरो तले,
अपने जीवन की नैया का, वो केवट हम खोजने चले
किस कोने पर मिलेगी वो ,जाने क्या किस्मत हमारी है
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

जिन्दगी की कोई शाम, अब हमें नहीं लुभाती है
अब कान्हा की मुरली भी, हमें नहीं सुहाती है
किस ब्रज मैं भटक रही ,वो राधा प्यारी है
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

हमें तो अभी भी आसमान साफ़ दिखता है
हमें तो अभी भी चाँद मैं चाँद दिखता है
कब आएगी वो रात, जिसके चाँद की चांदनी हमारी है
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

देखना है ,वो कब सुनता है मन्नत मेरी
आँखों मैं कब आएगी जन्नत मेरी
कल तक तुम्हारी थी ,अब हमारी बारी है
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

कई लोगो ने मुझसे ये कहा और कई लोग ऐसा सोचते भी है --

लोग कहते है- नहीं हो तुम खिलाडी इस प्रेम खेल के
क्यों अजमाते हो किस्मत, इतना सब झेल के ..

मैं कहता हूँ -

खेलूँगा मैं , मिले तो वो जिसके लिए मेरी जिंदगी की पारी है
उस गुमशुदा की तलाश अभी तक जारी है .....

PS : This poem is dedicated to all my single friend who are ready to mingle (i.e.- Rohitra ,Nitin ,Natu ,Cross,Pitara, Daggu n many more {Chhotu Excluded })
- I hope many people have got the answer by last 5 lines.

-सौरभ श्रीवास्तव
All copy right of this poem has been reserved [:)]

Saturday, September 5, 2009

छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये .....





छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

नए साथी मिले थे ..नए रिश्ते बने थे,
नई उम्मीदों के साथ हम पड़ने चले थे,
देखते ही देखते वो दिन हवा हो गये ॥
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

जब घर की याद सताने लगती थी
जब एक दिन रुकना भी बेईमानी लगता था
तब दोस्तों के कंधो को हम अपना बनाते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...



जब रेगिंग का डर दिल मैं लगा रहता था ...
रूम कालिंग यमराज का बुलावा लगता था,
सीनियर को देखते ही हमारे रास्ते बदल गये ,
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

जब रात रात भर हम बतियाते थे
रेगिंग देकर लौटे सूरमा अपनी वीर गाथा सुनते थे
दिल के कोने मैं छुपे उस दर्द को हम पीते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ....

ED Hall जहन्नुम का दरवाजा लगता था
PC एक राग पुराना लगता था
Workshop के दिए घावो को भी हम सींते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

नही भूले हम.....
KSD ,BND के खूंखार चहरो को
वो मुस्की की "लाली" ,वो आभा "निराली"
I सिन्हा के क्लोरोफोर्म को भी हम पीते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

वो पंडा बेकार , अनीता मोहन मक्कार
Physics ,Chem Math हमें कभी न भये
Environmental Science को हम अपना बनाते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

CS ,Dota नही आते थे हम carom से काम चलते थे
lappy, Dappy के वगैर हम Walkman पर ही सो जाते थे
वो जीवन के सुनहरे दिन कही धुआं हो गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

Center पर चलो ,Center पर चलो
वो आवाज डरावनी लगती थी
एक GF की आस मैं ,जिन्दगी सुहावनी लगती थी
उस याद मैं हम अपना वक्त खोते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

आज याद आते है वो पल
दिन भर हाहा हीही हूहू
वो हसना हसाना ,वो बातें बनाना
उन सुनहरे पालो को हम सजोंते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

कोई लौटा सकता है वो लम्हे
वो फ्रेशेर की मस्ती ,वो अस्सी की कस्ती
वो मेस को गरियाना , वो bunk के बहाने सुझाना
वो afternoon classes की नींदे ,वो बारिस के बूंदें
उन GPL की लातों मैं भी हम प्यार पाते चले गये
छोडो उस बात को यारों उसे चार वरस बीत गये ...

Wednesday, September 2, 2009

रुख नही मोडूँगा ..राह नही छोडूंगा ||


आशाएं ,उम्मीदें ,ऐतबार , Expectations आइये इन शब्दों से आपकी पहचान कराता हूँ |

सितारों को भरोसा है रात पर ,
फूलों को भरोसा है सुबह पर ,
धरती को आकाश पर,अंधेरे को प्रकाश पर ,
शिबरी को राम पर ,मीरा को श्याम पर,
शिक्षक को छात्र पर, नाटक को पात्र पर ,
खेत को किशान पर, देश को जवान पर,
जनता को नेता पर,नेता को अभिनेता पर ,

भरोसा है ,जिसके भरोसे चलती है दुनिया ...

ये पंकितियां उनके लिए जिन्हें मुझपर भरोसा है ......भले ही वो मम्मी-पापा का भरोसा हो, भाई का भरोसा हो या एक दोस्त का भरोसा हो .....

भले ही टूट जाऊँ , उम्मीदें न तोडूंगा,
आशाओं का सफर मैं साथ न छोडूंगा ,
जिंदगी रोज़ इन्तिहाँ लेगी मेरा ,
इन्सां हूँ अपने फ़र्ज़ से रुख न मोडूँगा |

सोचा है ,
कितनी मिन्नतों से बनता है भरोसे का महल ,
कितनी सा'ऊबात से होती है आशाओं की पहल ,
उस महल की ईंटो को खोखली न होने दूंगा
रुख नही मोडूँगा , राह नही छोडूंगा .....

लेकिन ,
उम्मींदो का बहाव तेज है, किनारा मिलने पर मुझे संदेह है ,
मत बहाना अस्क अगर मैं कही छूट जाऊं ,
उन आसुओं की कीमत न चुका संकूंगा ,
रुख नही मोडूँगा ,राह नही छोडूंगा .....