Wednesday, January 6, 2010

चार साल - चार पंक्ति

न किताबों से थी दोस्ती, न अल्फाजों को पहिचाना....
उस गली में खुशियाँ खोजी, जहां बना था मैखाना....
सपने मे रहने दो ,कोई मुझे अब न बतलाना...
बीत गये वो चार बरस, बीत गया एक और जमाना....
बस अब यही दुआ उस रब से है, सदा बना रहे ये याराना....

-© सौरभ